सीमांचल और मिथिलांचल को जोड़ने वाला दरभंगा-फारबिसगंज रेलखंड वर्ष 1934 से बंद हैं।दरभंगा-फारबिसगंज के बीच ट्रेनों का परिचालन, 89 वर्ष बाद भी अधूरा हैं। मालूम हो कि सहरसा-फारबिसगंज-दरभंगा रेल मार्ग पर आजादी के बाद से अब तक ट्रेन नहीं चली। ऐसा नहीं है कि कोई समस्या है या फिर कोई और वजह। बता दें कि यह रेलखंड बनकर तैयार हैं। सीआरएस ने जनवरी में सहरसा-फारबिसगंज और दरभंगा-फारबिसगंज रेल मार्ग के अंतिम फेज में नरपतगंज से फारबिसगंज के बीच आमान-परिवर्तन भी किया था। जिसके बाद सीआरएस द्वारा 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन चलाने की अनुमति दी गई थी।

सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी रेलवे बोर्ड द्वारा इस रूट पर ट्रेन चलाने की सहमति नहीं दी गई हैं, जिससे लोगों में आक्रोश देखा जाने लगा हैं। रेलवे के उदासीन रवैयों को लेकर सोशल मीडिया पर आक्रोश जताया जाने लगा हैं। वहीं ट्वीटर पर युवाओं ने इस मुद्दे को लेकर ट्विटर अभियान भी चलाया।

बताते चलें कि पूर्व मध्य रेल द्वारा सहरसा से ललितग्राम और दरभंगा से झंझारपुर तक चलने वाली डेमू ट्रेन का विस्तार फारबिसगंज तक, जोगबनी से सहरसा और जोगबनी से दानापुर के लिए नयी ट्रेन चलाने का प्रस्ताव रेलवे बोर्ड को भेजा गया। साथ ही जानकारी दें दे कि लोग सहरसा से फारबिसगंज के बीच 15 साल बाद ट्रेन चलने की बाट जोह रहे हैं, वहीं दूसरी ओर दरभंगा से फारबिसगंज रेलखंड पर 89 साल के बाद ट्रेन परिचालन शुरू होने की आस में लोगों की आंखें पथरा गई हैं। लोग बड़ी ही बेसब्री से इस रूट पर रेल सेवा बहाल होने का इंतजार कर रहे हैं।

दरभंगा-फारबिसगंज रेललाइन न केवल उत्तर बिहार बल्कि पूरे राज्य के लिए एक सेतु का काम करेगी। इस रेलखंड पर ट्रेनों के शुरू होने से कटिहार गए बगैर फारबिसगंज होते हुए सीधे न्यू जलपाईगुड़ी तक परिचालन किया जा सकेगा। इससे दूरी तो कम होगी ही पुराने रेलखंड का लोड काफी कम हो जाएगा। नेपाल से सटे बिहार के बड़े क्षेत्र का विकास भी हो सकेगा।