जूड़-शीतल मिथिला का लोक पर्व हैं। जी हां मिथिलांचल में इस दिन से ही नववर्ष माना जाता हैं। बताते चलें कि जूड़ शीतल ऐसा पर्व हैं जिसे मिथिला के हर घर में बड़े ही उत्साह और उल्लास के साथ परंपरागत तरीके से मनाया जाता हैं। जूड़ शीतल से एक दिन पहले सत्तुआनी मनाया जाता हैं। सत्तुआनी की रात को बनाए गये बडी चावल का प्रसाद इष्ट देव को भोग लगाया जाता हैं। जूड़ शीतल के दिन बासी भात जो एक दिन पहले बना होता हैं उसे भोग लगाया और खाया भी जाता हैं।

बताते चलें कि जूड़ शीतल के दिन बासी भात, दाल-पूड़ी, आम के टिकोले की चटनी, सहजन की सब्जी इन सबों का भोग लगता हैं। घर के सभी मुख्य दरवाजे पर रखा जाता हैं, चूल्हे की पूजा होती हैं, चूल्हे को भोग लगाया जाता है। जो अदृश्य तत्व होते हैं उनकी तृप्ति के लिए भी यह भोग लगाया जाता हैं। कहा जाय तो घर की छोटी-बड़ी सभी चीजों पर भोग लगता हैं।

जूड़ शीतल की सुबह घर के बड़े-बुजुर्ग व्यक्ति सत्तुआनी के रात को ही कुल देवता के पास रखे गए जल से घर के सभी छोटे बच्चे, पुत्र-पौत्र सभी के सर पर जल डालकर जुड़ाते हैं। साथ ही यह कामना करते हैं कि साल भर बच्चा स्वस्थ रहें। वहीं आज के दिन वृक्ष और पेड़-पौधों में भी पानी डाला जाता हैं। कहा जाता हैं कि जिस प्रकार लोग अपने संतानों को सींचते हैं उसी तरह अपने बागवानी में लगे पेड़-पौधों को भी सींचते हैं। इससे वनस्पति देवता खुश होते हैं।

जूड़ शीतल त्योहार की शुरुआत बड़े-बुजुर्ग द्वारा सुबह अपने रिश्तेदारों के सिर पर पानी डालने और उनके शामिल होने से होती हैं। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती हैं, कादो-माटी को अधिक से अधिक पानी के सेवन की ओर ध्यान आकर्षित करने की परंपरा के साथ खेला जाता हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे के शरीर पर मिट्टी लगाते हैं। गर्मी में धूप से होने वाले चर्म रोगों से बचाव के लिए मिट्टी का लेप किया जाता हैं।

मिथिला में लोक परंपराओं को लोग बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाते हैं। जूड़ शीतल में जूड़ शब्द जुड़ाव से बना है। साथ ही इसका अर्थ फलने-फूलने से भी हैं। यह पर्व नयी फसल यानी रबी की फसलों गेहूं, चना आदि की कटाई से भी जुड़ा हुआ हैं। इस सीजन में आम के फल बड़े होने लगते हैं। इस दिन घर के चूल्हे नहीं जलते हैं। अर्थात बासी भोजन खाया जाता हैं, इसके बारे में मान्यता है कि बासी खाने से पित्त की बीमारी नहीं होती हैं।