छठ महापर्व के खरना पूजा से ही मिथिलांचल में सामा-चकेबा पर्व का आगाज हो जाता हैं। बताते चलें कि साम-चकेबा पर्व भाई-बहन के अटूट प्यार के तौर पर मनाया जाता हैं। छठ पूजा से शुरू हुआ साम-चकेबा को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं। साम-चकेबा के साथ-साथ सतभैया, चुगला, वृंदावन जैसे तमाम मूर्तियों को बनाया जाता हैं। गांव में लोग कच्ची मिट्टी से इसको स्वरूप देते हैं, वहीं बाजारों में ये बना-बनाया भी उपलब्ध होता हैं।

कुल मिलाकर कहा जाय तो सामा-चकेबा मिथिला में भाई-बहन के प्रेम की अटूट विश्वास और सौहार्द का प्रतीक माना जाता हैं। इसमें सामा-चकेबा के साथ-साथ अलग-अलग मूर्तियां बनाई जाती हैं जिसका अपना अलग-अलग महत्व होता हैं। साम-चकेबा में बहन अपने भाई के लंबी उम्र की कामना करती हैं, वहीं बहन-भाई के बीच प्यार का रिश्ता और प्रगाढ़ होता हैं। गांवों में तकरीबन हर घरों में साम-चकेबा का पर्व मनाया जाता हैं।

सांध्य काल के बाद घरों की महिलाए या लड़कियां अपनी-अपनी मूर्तियों को लेकर एक जगह इकट्ठा होती, और साम-चकेबा खेलती हैं। इस दौरान साम-चकेबा का गीत गाया जाता हैं। छठ पूजा से शुरू हुआ साम-चकेबा का पर्व नौंवे दिन बहनें अपने भाइयों को धान की नयी फसल का चुड़ा और दही खिलाकर साम-चकेबा की मूर्तियों को तालाब या नदी तथा कहीं-कहीं सूखे खेतों में विसर्जित कर दिया जाता हैं।
